Friday, April 13, 2018

आदिवासी परिवारों के भोजन का आधार है मुनगा का वृक्ष "सफलता की कहानी"

आदिवासी परिवारों के भोजन का आधार है मुनगा का वृक्ष "सफलता की कहानी" 
ग्रामीण क्षेत्रों की आर्थिक उन्नति में भी सहायक है - मुनगा 
अनुपपुर | 13-अप्रैल-2018
 
  
   अनूपपुर जिले की जलवायु मुनगा उत्पादन के लिये अत्यन्त अनुकूल है। मुनगे का वानीटिकल नाम मोरिगा ओंलिफेरा  है। मुंनगे के पेड़ को तैयार करने के लिये ज्यादा देख-रेख या पानी अथा उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती है। वर्षात के दिनों में मुनगा का फल जो डण्डी के रूप में होता है, जमीन में गाड़ दिया जाये तो, मुनगा का पेड़ तैयार हो जाता है। जिले के आदिवासी अंचल में यह अत्यन्त लोकप्रिय वृक्ष है। घरो की बाड़ियों खेत की मेड़ों, स्कूल या सरकारी कैम्पस में मुंनगे के पेड़ बहुतायत में मिलते है।
   मुनगा एक अत्यन्त लाभकारी वृक्ष है। मुंनगे का उपयोग आयुर्वेद औषधि कम्पनियां, पेट से संबंधित दवाईयों या चूर्ण बनाने में उपयोग करती है। मुंनगे में आयरन की मात्रा कॉफी अधिक होती है। इसलिये गर्भवती माताओं, अल्प रक्तता से पीड़ित किशोरियों या कुपोषण के शिकार लोगों को मुनगा के सेवन से की सलाह  दी जाती है। प्रदेश सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा मुनगा का पेड़ लगाने का अभियान ग्रामीण क्षेत्रों में चलाया  जा रहा है।
   मुनगा एक ऐसा वृक्ष है, जिसकी पत्ती, फूल एवं फल सभी का उपयोग विभिन्न व्यंजनों में होता है। आज के युग में जब दुनिया आर्गेनिक प्रोडेक्ट की दीवानी है। मुनगा के पत्तों से विदेशी कम्पनियां टी-बैग तैयार करती है जो ताजगी प्रदान करता है। विदेशों में इसकी काफी मांग है। मुनगा के फूल की कड़ी बतनी है जो अजीर्ण या पेट संबंधी बीमारियों के लिये राम बाण मानी जाती है। इसी तरह मुनगा के फल का उपयोग अनेक रूपों में किया जाता है। मुनगा की सब्जी, दाल में मुनगा पकाया  जाता है। मुनगे की कडी का तो जायका ही अलग होता है। इनके अलावा मुनगा को सुखाकर उसके बीज को एकत्र कर लिय जाता है, जिसको हर्रा, बहेरा, आंवला के साथ मिलाकर पेट संबंधी विकारों की औषधि तैयार की जाती है।
   मुनगा की डण्डी लम्बे समय तक खराब नहीं होती है, और न उसके रख-रखाव की आवश्यकता होती है। अनूपपुर जिले में ग्रामीण क्षेत्रों में मुनगा का उत्पादन लगभग 1800टन है। पश्चिम बंगाल,बिहार,  उड़ीसा, कोलेता, दिल्ली, सिलीगुडी, मुम्बई, छत्तीसगढ, उत्तर प्रदेष क्षेत्र के व्यापारी स्थानीय व्यापारियों के सहयोग  से 10 रूपये किलो मुनगा खरीदते हैं, जिसे वह बंगाल, उड़ीसा, महारष्ट्र, उ.प्र., बिहार तथा दक्षिण राज्यों में बेच देते है।
   किसानों को मुंनगे के एक पेड़ से लगभग 40 से 100 किलो किलों मुनगा फल प्राप्त होता है,जैतहरी जनपद के ग्राम कोडा गांव निवासी श्री चन्द्रशेखर यादव ने बताया कि उनके गांव से गर्मी के सीजन में 100 लोग प्रतिदिन मुनगा बेंचने अनूपपुर आते हैं  जिससे वे प्रतिवर्ष 1000 रूपये तक कमा लेते हैं। यह गरीब आदिवासी परिवारों के जरूरतों को पूरा करने वाला वृक्ष है। जैतहरी एवं राजेन्दग्राम के अधिकतर ग्रामों से ग्रामीण जिला मुख्यालय में मुनगा बेंचने आते हैं तथा दैनिक जीवन की वस्तुयें बाजार से खरीदकर ले जाते है। मुनगा की खरीदी करने वाले व्यापारी श्री दीपक केशरवानी, नफीष मुसूरी ने बताया कि वे प्रतिदिन 6 टन मुनगा खरीदतें हैं, यह क्रम एक महीने तक चलता है। खरीदा हुआ मुनगा 20 रुपये किलों तक बेंच देते हैं।

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