Thursday, August 16, 2018

वाजपेयी जी ने पूरा जीवन देश के लिए जिया- शिवराजसिंह चौहान

वाजपेयी जी ने पूरा जीवन देश के लिए जियाशिवराजसिंह चौहान


 

सीएम ब्लॉग


मैं बचपन से ही अपने गाँव से भोपाल ढ़ने चला गया था। भोपाल मेंमैंने सुना कि भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी कीएक सभा चार बत्ती चौराहे बुधवारे में है। मैंने सोचा चलो भाषण सुन केआएं। अटल जी को जब बोलते सुना तो सुनते ही रह गया।ऐसा लग रहा थाकि जैसे कविता उनकी जिव्हा से झर रही है। वो बोल रहे थे,ये देश केवलजमीन का टुकड़ा नहींएक जीता जागता राष्ट्र-पुरुष है, हिमालय इसका मस्तिष्क हैगौरी-शंकर इसकी शिखा हैंपावस के कालेकाले मेघ इसकीकेश राशि हैंदिल्ली दिल हैविंध्यांचल कटि हैनर्मदा करधनी हैपूर्वी घाटऔर पश्चिमी घाट इसकी दो विशाल जंघाएँ हैंकन्याकुमारी इसके पंजे हैंसमुद्र इसके चरण पखारता हैसूरज और चन्द्रमा इसकी आरती उतारते हैंयेवीरों की भूमि हैशूरों की भूमि हैये अर्पण की भूमि हैतर्पण की भूमि है,इसका कंकर-कंकर हमारे लिए शंकर है, इसका बिंदु-बिंदु हमारे लिएगंगाजल है, हम जियेंगे तो इसके लिए और कभी मरना पड़ा तो मरेंगे भीइसके लिए और मरने के बाद हमारी अस्थियाँ भी अगर समुद्र में विसर्जित कीजाएंगी तो वहां से भी एक ही आवाज़ आएगी भारत माता की जयभारतमाता की जय...

इन शब्दों ने मेरा जीवन बदल दिया। राष्ट्र प्रेम की भावना हृदय में कूट-कूट कर भर गई और मैंने फैसला किया कि अब ये जीवन देश के लिए जीनाहै। ये राजनीति का मेरा पहला पाठ था। इसके बाद से राजनीति में मैंमाननीय अटल जी को गुरू मानने लगाजब भी कभी अटल जी को सुनने काअवसर मिलतामैं कोई अवसर नहीं चूकता। बचपन में ही भारतीय जनसंघका सदस्य बन गया, और मैं राजनीति में सक्रिय हो गया। आपातकाल मेंजेल चला गया, और जेल से निकल कर जनता पार्टी में काम करने लगा,फिर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गया।अटल जी से मेरी पहली व्यक्तिगत बातचीत भोपाल में एक राष्ट्रीयकार्यकारिणी की बैठक के दौरान तब हुई जब मेरी ड्यूटी एक कार्यकर्ता केनाते उनकी चाय नाश्ते की व्यवस्था के लिए की गई।मैं अटल जी के लिएफलड्राई फ्रूट इत्यादि दोपहर के विश्राम के बाद खाने के लिए ले गया। तोवे बोले,क्या घासफूस खाने के लिए ले आए, अरे भाईकचौड़ी लाओसमोसे लाओपकोड़े लाओ या फाफड़े लाओ और तब मैंने उनके लिए नमकीन की व्यवस्था की। एक छोटे से कार्यकर्ता के लिए उनके इतने सहजसंवाद ने मेरे मन में उनके प्रति आत्मीयता और आदर का भाव भर दिया।उनके बड़े नेता होने के नाते मेरे मन में जो हिचक थीवो समाप्त हो गई।

84 के चुनाव में वे ग्वालियर से हार गए थेलेकिन हारने के बाद उनकी मस्ती और फक्कड़पन देखने के लायक था। जब वो भोपाल आए तो उन्होंनेहँसते हुए मुझे कहाअरे शिवराजअब मैं भी बेरोजगार हो गया हूँ 1991में उन्होंने विदिशा और लखनऊदो जगह से लोकसभा का चुनाव लड़ाऔरये तय किया कि जहां से ज्यादा मतों से चुनाव जीतेंगेवो सीट अपने पासरखेंगे। मैं उस समय उसी संसदीय क्षेत्र की बुधनी सीट से विधायक था।बुधनी विधानसभा में चुनाव प्रचार की ज़िम्मेदारी तो मेरी थी हीलेकिन युवामोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष होने के नातेमुझे पूरे संसदीय क्षेत्र में काम करने कामौक़ा मिला था। उस समय अटल जी से और निकट के रिश्ते बन गए। जबमैं उनके प्रतिद्धन्दी से उनकी तुलना करते हुए भाषण देता थातो मेरे एकवाक्य पर वो बहुत हंसते थे। मैं कहता था,कहाँ मूंछ का बाल और कहाँ पूंछका बालतो वो हंसते हुए कहते थे क्या कहते हो भाईइसको छोड़ो

विदिशा लोकसभा वो एक लाख चार हजार वोट से जीते और लखनऊएक लाख सोलह हजार से। ज्यादा वोटों से जीतने के कारण उन्होंने लखनऊसीट अपने पास रखी और विदिशा रिक्त होने पर मुझे विदिशा से उपचुनावलडवाया। उपचुनाव में जीत कर जब मैं उनसे मिलने गया तो उन्होंने मुझेला से कहाआओ विदिशा-पतिऔर तब से वो जब भी मुझसे मिलतेतो मुझे विदिशा-पति ही कहते और जब भी मैं विदिशा की कोई छोटीसमस्या भी लेकर जाता तो उसे भी वो बड़ी गम्भीरता से लेते। एक बारगंजबासौदा में एक ट्रेन का स्टॉप समाप्त कर दिया था। जब मेरे तत्कालीनरेल मंत्री श्री जाफर शरीफ जी से आग्रह करने बाद भी ट्रेन को दोबारास्टॉपेज नहीं दिया गया तो मैं अटल जी के पास पहुंचाऔर मैंने कहा किआप इस ट्रेन का स्टॉप फिर से गंजबासौदा में करवाइए। उन्होंने संसद भवनमें ही पता लगवाया कि श्री जाफर शरीफ जी कहाँ हैं संयोग से वे संसद भवनमें ही थे, अटल जी चाहते तो फोन कर सकते थे। लेकिन फोन करने कीबजाय उन्होंने कहा कि चलो सीधे मिल के बात करते हैं। इतने बड़े नेता काएक ट्रेन के स्टॉप के लिए उठकर रेल मंत्री के कक्ष में जाना मुझेआश्चर्यचकित कर गया और तब मैंने जाना कि छोटे-छोटे कामों को करवानेके लिए भी अटल जी कितने गम्भीर थे कि जनता की सुविधा के लिए उन्हेंवहां जाने में कोई हिचक नहीं है। मैं भी उनके साथ श्री जाफर शरीफ जी केपास गया और तत्काल जाफर शरीफ जी ने रेल का स्टाफ गंजबासौदा मेंकर दिया।

2003 में मध्यप्रदेश में विधान सभा के चुनाव थे। उस समय तत्कालीनकांग्रेस की सरकार द्वारा सूखा राहत के लिए राशि केंद्र सरकार से मांगी जारही थी। हम भाजपा के सांसदों का एक समूह यह सोचता था कि विधानसभा के चुनाव आने के पहले यदि यह राशि राज्य शासन को मिलेगी तोसरकार इस राशि का दुरूपयोग चुनाव जीतने के लिए करेगी, इसलिए कईसांसद मिलकर माननीय अटल जीजो उस समय प्रधानमंत्री थेके पासपहुंचेऔर उनसे कहा कि इस समय राज्य सरकार को कोई भी अतिरिक्तराशि देना उचित नहीं होगा, तब अटल जी ने हमें समझाते हुए कहा किलोकतन्त्र में चुनी हुई सरकार किसी भी दल की होउस सरकार को मददकरने का कर्त्तव् केंद्र सरकार का हैइसलिए ऐसे भाव को मन से त्यागदीजिये।

1998 के अंत में मेरा एक भयानक एक्सीडेंट हुआ। मेरे शरीर में 8फ्रैक्चर थे। उसी दौरान एक वोट से माननीय अटल जी की सरकार गिर गई।मैं भी स्ट्रेचर पर वोट डालने गया था। तब फिर से चुनाव की घोषणा हुई।मुझे लगा ऐसी हालत में मेरा चुनाव लड़ना उपयुक्त नहीं होगा। मैंने अटल जीसे कहा कि इस समय विदिशा से कोई दूसरा उम्मीदवार हमें ढूँढना चाहिएमेरी हालत चुनाव लड़ने जैसी नही है, तब उन्होंने स्नेह से मुझे दुलारते हुएकहाखीर में इकट्ठे और महेरी में न्यारेये नहीं चलेगा. ...जब तुम अच्छे थेतब तुम्हें चुनाव लड़वाते थे। आज तुम अस्वस्थ हो तब तुम्हें  लड़वाएंयेनहीं होगा। चुनाव तुम ही लड़ोगे, जितना बने जाना, बाक़ी चिंता पार्टीकरेगीऔर मैं अस्वस्थता की अवस्था में भी चुनाव लड़ा और जीता। ऐसेमानवीय थे अटल जी। ऎसी कई स्मृतियाँ आज मस्तिष्क में कौंध रही हैं।

हमारे प्रिय अटल जी नहीं रहे।

सबको अपना मानने वालेसबको प्यार करने वालेसबकी चिंता करनेवालेसर्वप्रिय अजातशत्रु राजनेता, उनके लिए कोई पराया नहीं थासबअपने थे।पूरा जीवन वे देश के लिए जिए। भारतीय संस्कृतिजीवन मूल्योंऔर परम्पराओं के वे जीवंत प्रतीक थे। भारत माता के पुजारीउनकीकविताहार नहीं मानूँगारार नहीं ठानूँगाकाल के कपाल पर लिखता-मिटाता हूँगीत नया गाता हूँसाहस के साथ हमें काम करने की प्रेरणा देतीहै।

उनके चरणों में शत-शत नमन  प्रणाम.

शिवराज सिंह चौहान,
मुख्यमंत्रीमप्र

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